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लिमिटेड मनुस्कीर
1995 | 105 mins. | मराठी | सामाजिक

मागुनी एक बैलगाड़ी चालक है जिसने खालीकोट बस्ती के लोगों का दिल जीत रखा है। एक दिन यह खबर फ़ैल जाती है कि लोग अब से मागुनी की बैलगाड़ी की सवारी नहीं करेंगे क्यूंकि सिंह परिवार नगर में मोटर-बस चलाने की योजना बना रहा है। मागुनी इस खबर को हंसी में उड़ा देता है क्यूंकि वह जानता है कि लोग बस के लिए उसकी बैलगाड़ी को नहीं छोड़ेंगे। लेकिन लोग बस को पसंद करते हैं जिससे मागुनी निराश हो जाता है। मागुनी बैलगाड़ी तैयार करने के लिए सुबह और भी जल्दी उठता है लेकिन लोग बस पकड़ लेते हैं। मागुनी और उसके प्यागरे बैल भुखमरी की कगार पर पहुँच जाते हैं। और फिर एक दिन बस्तीवालों को मागुनी की लाश उठाने के लिए उसकी छोटी सी झोंपड़ी का दरवाज़ा तोड़ना पड़ता है।

निर्देशक: जयू और नचिकेत पटवर्धन

निर्माता :एनएफडीसी और दूरदर्शन

कलाकार: रजित कपूर, गोपिका साहनी, रविन्द्र मनकानी, गणेश यादव, वासुदेव पलांदे, प्रमिला बेडेकर, ललिता पवार, सुधीर जोशी

पुरस्कार

फिल्मफेयर अवार्ड 1996 - सर्वोत्तम निर्देशन

मढ़ही दा दीवा
मागुनी की बैलगाड़ी

1989 | 110 मिनट . | रंगीन | पंजाबी | सामाजिक

यह पंजाबी की पहली कला फिल्म है जो गुरदियाल सिंह के प्रसिद्ध उपन्यास पर आधारित सामंतवाद पर एक मेलोड्रामा है। कहानी क्षेत्र के ग्रामीण कुलीन वर्ग की दो पीढ़ियों के ज़रिये बटाईदारी से पूंजीवादी खेती में हो रहे संक्रमण का इतिहास बताती है। बटाईदार ठोला के बेटे जसबीर को भूस्वामी धरम सिंह अपना भाई मानता है। लेकिन भूस्वामी का बेटा इस परंपरा कायम नहीं रखता। क्यूंकि जसबीर की माँ बंजारों की जाति से आती है, नायक का नपुंसक नाई नीका की दुल्हन के प्रति प्रेम तमाम दिक्कतों से भरा है। जसबीर के पिता और फिर उसकी अपनी कब्र जसबीर के बिगड़ते स्वास्थ और मौत का प्रतीक बन जाती है।

निर्देशक: सुरिंदर सिंह

निर्माता:एनएफडीसी और दूरदर्शन

कलाकार: राज बब्बर, दीप्ती नवल, कंवलजीत, परीक्षित साहनी, आशा शर्मा, पंकज कपूर

पुरस्कार

राष्ट्रीय पुरस्कार – 1990 सर्वोत्तम पंजाबी फिल्म

मागुनीरा शगदा
मागुनी की बैलगाड़ी

2001 | 89 मिनट | रंगीन | उड़िया | सामाजिक

मागुनी एक बैलगाड़ी चालक है जिसने खालीकोट बस्ती के लोगों का दिल जीत रखा है। एक दिन यह खबर फ़ैल जाती है कि लोग अब से मागुनी की बैलगाड़ी की सवारी नहीं करेंगे क्यूंकि सिंह परिवार नगर में मोटर-बस चलाने की योजना बना रहा है। मागुनी इस खबर को हंसी में उड़ा देता है क्यूंकि वह जानता है कि लोग बस के लिए उसकी बैलगाड़ी को नहीं छोड़ेंगे। लेकिन लोग बस को पसंद करते हैं जिससे मागुनी निराश हो जाता है। मागुनी बैलगाड़ी तैयार करने के लिए सुबह और भी जल्दी उठता है लेकिन लोग बस पकड़ लेते हैं। मागुनी और उसके प्यागरे बैल भुखमरी की कगार पर पहुँच जाते हैं। और फिर एक दिन बस्तीवालों को मागुनी की लाश उठाने के लिए उसकी छोटी सी झोंपड़ी का दरवाज़ा तोड़ना पड़ता है।

निर्देशक: प्रफुल्ल मोहन्ती

कैमरा: भरत नेरकर

सम्पादक: मोहन प्रसाद

संगीत: अमरेन्द्र मोहन्ती

कलाकार: अश्रु मोचन मोहन्ती, जया सैल, धीरेन्द्र बासा, नीला मणि बेहेरा, मनोरमा मोहन्ती

पुरस्कार

सर्वोत्तम उड़िया फिल्म के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार

फिल्म समारोह में भागीदारी

इंडियन पैनोरामा – 2002


मम्मो
1994 | 130 मिनट | रंगीन | हिन्दी | सामाजिक

मेहमूदा बेगम की बहनें उसे मम्मो कह कर बुलाती हैं। वह लाहौर के एक आदमी से शादी कर लेती है। विभाजन के बाद वह और उसका शौहर स्वतः पाकिस्तानी नागरिक बन जाते हैं। निःसन्तान ही सही, लेकिन शौहर की मृत्यु तक उसकी शादी खुशियों भरी रही है। संपत्ति के मामलों में मम्मो के रिश्तेदारों उसे घर से निकाल देती हैं। वह अपने एकमात्र नातेदारों – अपनी दो बहनों के साथ रहने हिन्दुस्तान आ जाती है। अपना वीसा न बढ़वा पाने के कारण उसको लौटना पड़ता है – राजनीतिक प्राथमिकताए मानवीय प्राथमिकताओं को पराजित कर देतीं हैं!

निर्देशक:श्याम बेनेगल

कैमरा: प्रसन जैन

सम्पादक: असीम सिन्हा

सम्पादक:वनराज भाटिया

कलाकार: फरीदा जलाल, सुरेखा सीकरी, अमित फाल्के, हिमानी शिवपुरी और रजित कपूर

पुरस्कार

सर्वोत्तम सहायक अभिनेत्री के लिए फिल्मफेयर क्रिटिक्स अवार्ड

सर्वोत्तम फीचर फिल्म और सर्वोत्तम सहायक अभिनेता के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार - 1995

सर्वोत्तम फीचर फिल्म अवार्ड के लिए स्टार और स्टाइल पुरस्कार


फिल्म समारोहों में भागीदारी

12वां जेरूसलम फिल्म समारोह -1995

ऑस्ट्रलियाई फिल्म समारोह कैनबेरा -1996

ऑस्ट्रलियाई फिल्म समारोह कैनबेरा -1996

कायरो फिल्म समारोह -1995

फेस्टिवल ऑफ़ कंटेम्पररी इंडियन सिनेमा सेशेल्स - 2002

इंडियन पैनोरामा, भारत का अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह


मरुपक्कम
दूसरा पहलू

1990 | 80 मिनट | रंगीन | तमिल | सामाजिक

अम्बी कुम्बकोनम से दिल्ली आता है और उसे धक्का लगता है जब उसके पिता वैदिक विद्वान, वेम्बू ऐय्यर उसको पहचान नहीं पाते। अम्बी को अपनी माँ से ज्ञात होता है कि अपने पुत्र के दुखी विवाह की खबर प्राप्त करने के बाद से ही वेम्बू ऐय्यर ने मौन रूप धारण कर रखा है। धीरे धीरे बूढ़े आदमी की आत्मग्लाबनि सतह पर आने लगती है।

निर्देशक:केएस सेतु माधवन

कैमरा:डी वसंत कुमार

सम्पादक:जी वेंकटरमण

संगीत: एल वैद्यनाथन

कलाकार : शिव कुमार, जया भारती, राधा, शेखर

पुरस्कार

सर्वोत्तम फीचर फिल्म और सर्वोत्तम पटकथा के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार, और सर्वोत्तम अभिनेता के लिए स्पेशल ज्यूरी अवार्ड


फिल्म समारोह में भागीदारी

फेस्टिवल ऑफ़ रीजनल सिनेमा सेशेल्स – 2003


मेस्सी साहिब
1986 | 118 मिनट | रंगीन | हिन्दी | कॉमेडी

भारतीय मूल के फ्रांसिस मेस्सी को लगता है कि वह ब्रिटिश उपनिवेशवादियों से ज्यादा मेल खाते हैं। आत्मविश्वासी मेस्सी ब्रिटिश नौकरशाह के वेश में रहता है। जब उप-उच्चायुक्त आता है तो वह मेस्सी को एक भ्रष्ठ व्यक्ति पाता है। मेस्सी सपना देख रहा है कि वह किसी दिन आदिवासी लड़की सैला से विवाह करेगा।

निर्देशक | कहानी: प्रदीप कृष्ण|

कैमरा:कैमरा

कैमरा:कैमरा

कैमरा: वनराज भाटिया

कलाकार: रघुवीर यादव, बैरी जॉन, अरुंधती रॉय, वीरेन्द्र सक्सेना

पुरस्कार

भारत के अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में सर्वोत्तम अभिनेता - 1987

सर्वोत्तम निर्देशक के लिए भारतीय निर्देशक एसोसिएशन पुरस्कार - 1987

वेनिस अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह - सर्वोत्तम अभिनेता के लिए फिप्रेस्सी क्रिटिक्स अवार्ड - 1986


माया बाज़ार
2009 | 110 मिनट | बांग्ला | रोमांचक

माया बाज़ार तीन फिल्मों की श्रृंखला है।

स्मृति…. (Memories)

स्मृति एक जवान विधवा कुहू की कहानी है जो अपने पति की यादों में डूबी हुई है। वह इतनी ज्यादा मग्न है कि जब वह एक प्रेमी ढूँढ लेती है तो वह धीरे-धीरे उसके मृत पति में बदलने लगता है। निशित एक बार में अपनी महिला मित्र से मुलाकात होने पर कुहू की यादों और अकेलेपन की कहानी सुनाता है।

सत्व (Soul )

सत्व एक चित्रकार धृतिन की कहानी है जो अपनी सौतेली माँ के साथ एक बड़े से घर में रहता है। अपने मित्र शोमक द्वारा खींची गयीं पुराने कलकत्ता की तस्वीरों को पलटते वक्त वह उस लड़की की तस्वीर देखता है जो उसके सपनों में बार बार आती है। शोमक से पूछने पर वह बताता है की वह उसकी बहन वनलता है जो बहुत दूर रहती है। धृतिन निझमपुर स्थित उसके गाँव के घर जाता है जहाँ रखवाला कालिदा उसे वनलता के बारे में बताता है जो तालाब में डूब गयी थी। धृतिन वनलता की उपस्थिति घर में महसूस करता है और धीरे धीरे उसपर वनलता का जुनून सवार हो जाता है। उसका जुनून इस हद तक चला जाता है कि एक दिन अचानक वह उसको अपनी कल्पना में गढ़ता है और वनलता के गढ़े गए रूप के साथ रहता है।

बोभिश्वोत (Future)

बोभिश्वोत गणित के प्रोफेसर महेश और दर्शन के प्रोफेसर हरिनाथ की कहानी है। महेश एक नास्तिक है व हरिनाथ एक आस्तिक है। बहस चलती रहती है और कई घटनाओं से गुज़रते हुए उनका सामना जीवन के एकमात्र सत्य से होता है – जो कि मौत है।

निर्देशक: जोयदीप घोष

निर्माता: एनएफडीसी

संगीत निर्देशक: अनुपम मल्लिक

कलाकार: रूपा गांगुली, कृष्णा किशोर, बादशाह मोइत्रा, दीपांजन भट्टाचार्य, पायल डे, प्रसून गायने, आशीष मुख़र्जी, धृतमान चटर्जी, प्रदीप मुखर्जी


मिर्च-मसाला
1991 | 120 मिनट | रंगीन | हिन्दी | सामाजिक

सवतंत्रता-पूर्व भारत के एक एकांत गाँव में औपनिवेशिक शासन का अभिकर्ता सूबेदार (कर जिलाधिकारी), अपने सैनिकों के जत्थे और रौबदाब के साथ पधारता है। उसके सम्मान में हो रहे उत्सव के दौरान उसकी नज़र एक सांवली, खूबसूरत व जोशीली स्त्री सोनबाई पर पड़ जाती है, जिसका पति काम के लिए शहर गया हुआ है।

सूबेदार सोनबाई को पाने की चाहत करता है। लेकिन सोनबाई उसकी कोशिशों को ठुकरा देती है। वह उसके शिकंजे से बच निकलती है और स्थानीय मसालों के कारखाने में अन्य स्त्रियों के साथ मिर्च-मसाले कूटने का काम करती है। कारखाने का बूढ़ा चौकीदार हालातों को भांपते हुए कारखाने के दरवाजों पर चटखनियाँ लगा देता है और सोनबाई को सूबेदार के सैनिकों के हवाले करने से इनकार कर देता है।

सूबेदार के लिए यह उसके प्रभुत्व को चुनौती और अहम का अपमान है। उसे किसी भी कीमत पर उस औरत को पाना ही होगा। वह कारखाने के मालिक और गाँव के मुखिया को बुलवाता है और कर के रूप में सोनबाई की मांग करता है, नहीं तो वह गाँव को तबाह कर देगा। गाँव के लोगों के बीच ध्रुवीकरण हो जाता है। क्या एक स्त्री का सम्मान सारी मुसीबत के लायक है?

अपनी मांग पर अड़े सूबेदार, कारखाने के अन्दर एक निडर स्त्री और बाहर परिणाम से भयभीत लोगों के साथ आखिरी मुकाबले के लिए मंच तैयार है।

निर्देशक:केतन मेहता

कैमरा:जहाँगीर चौधरी

सम्पादन:संजीव शाह

संगीत:रजत ढोलकिया

कलाकार: नसीरुद्दीन शाह, स्मिता पाटिल, ओम पुरी, सुरेश ओबेरॉय, दीप्ति नवल, राज बब्बर

पुरस्कार

सर्वोत्तम सहायक अभिनेता, सम्पादक, फीचर फिल्म के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार

सर्वोत्तम फीचर फिल्म के लिए स्टार और स्टाइल पुरस्कार- 1987

आईएफडीए द्वारा वर्ष की सर्वोत्तम सात फिल्मों में नामांकित - 1987

1987 की सर्वोत्तम फिल्म के लिए वेस्ट बंगाल जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन अवार्ड


फिल्म समारोह में भागीदारी

हवाई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह - सर्वोत्तम फीचर फिल्म - 1987

डकार सेनेगल में ब्राजील भारतीय फिल्म समारोह – 2002


निर्बाचना
1994 | 100 मिनट | उड़िया | सामाजिक

फिल्म भारतीय चुनावों के तिकड़मों और भ्रष्टाचार को उजागर करती है। एक युवक यह खबर पाकर खुश है कि स्थानीय प्रत्याशी अपना चयन करने उसे पैसे देगा। यह पैसे शादी करने में उसकी मदद करेंगे। लेकिन वह ये पैसे एक बीमार बिखारी के लिए कुर्बान कर देता है।

निर्देशक:विप्लव रॉय चौधरी

निर्माता :एनएफडीसी लिमिटेड

कलाकार: दुर्लव सिंह, भीमा सिंह, बिकास दास, बिद्युत प्रवा पटनायक, निखिलबरण



नसीम
1995 | 120 मिनट | रंगीन | हिन्दी | सामाजिक

नसीम का शाब्दिक अर्थ सुबह की कोमल पवन होता है। यह एक युवती का नाम है जो अपने परिवार के साथ बम्बई में रहती है। वर्ष 1992 है। यह एक ऐसा वर्ष था जब भारत एक राष्ट्र के तौर पर दर्दनाक दौर से गुज़रा। एक मस्जिद को ध्वंस कर दिया गया और उसके परिणाम स्वरुप होने वाले और दंगों, मार-काट और वहशीपन ने ऐसे घाव छोड़ दिए जिन्हें भरने में सालों लगेंगे। नसीम इस भयानक दौर में, एक युवती और उसके दादा की मार्मिक कहानी है।

निर्देशक | कथांकन:सईद मिर्ज़ा

कैमरा:वीरेन्द्र सैनी

सम्पादक: जावेद सय्यद

संगीत:वनराज भाटिया

कलाकार: कैफ़ी आज़मी, सुरेखा सीकरी, मयूरी कांगो

पुरस्कार

सर्वोत्तम निर्देशन और पटकथा के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार

सिल्वर "आर"पुरस्कार

फिल्म समारोह में भागीदारी

इंडियन पैनोरामा - भारत का अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह

भारतीय फिल्म प्रोग्राम - एमस्टरडैम - 1998

सिंगापुर फिल्म समारोह - 1997

43वां सिडनी फिल्म समारोह - 1996

द्रौमब्यूई फिल्म समारोह यूके - 1996

रयूमिनी फिल्म समारोह इटली - 1996

वैंकूवर फिल्म समारोह कनाडा - 1996

वेल्श फिल्म समारोह यूके - 1996

बिर्मिंघम फिल्म समारोह - यूके 1996

डब्लिन फिल्म समारोह आयरलैंड – 1997



नज़र
The Gaze

1990 | 124 मिनट | रंगीन | हिन्दी | सामाजिक

पत्नी की म्रृत्यु के बाद पति उससे अपनी पहली मुलाकात व शादी को याद करता है। वह उम्र में उससे काफी छोटी थी। वह प्राचीन वस्तुओं की दुकान पर सामान गिरवी रख कुछ पैसे बनाती थी। पति उसकी मनोदशा से काफी कुतूहलपूर्ण अवस्था में रहता है। जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ती है, वह पाता है कि वह एक अनाथ थी जो अपनी दो रिश्ते्दारों के साथ रहती थी। फिल्म एक ऐसे ढंग से उनके जटिल जीवन का परीक्षण करती है जो कि भारतीय सिनेमा के लिए अनोखा है।

निर्देशक:मणि कौल

सम्पादन:ललिता कृष्ण

संगीत:विक्रम जोगलेकर और डी वुड

कलाकार: शेखर कपूर, शाम्भवी, सुरेख सीकरी

फिल्म समारोह में भागीदारी

बर्मिंघम फिल्म समारोह - यूके

फ्राईबॉर्ग फिल्म समारोह - जर्मनी 1990

हांगकांग अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह

लिस्बन फिल्म समारोह - पुर्तगाल

लोकार्नो फिल्म समारोह - स्विट्ज़रलैंड

लन्दन फिल्म समारोह - यूके

रॉटरडैम फिल्म समारोह - नेदरलैंड्स

रॉटरडैम, फेस्टिवल दे 3 कौनटीनौ, नौंट - फ्रांस 1990

सिएटल फिल्म समारोह - यूएसए


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