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करंट
1991 | 140 मिनट | सामाजिक | हिन्दी

यह फिल्म किसी उदासीन संस्थान का सामना करते एक व्यक्ति द्वारा झेली गयी कठिनाइयों से रूबरू कराती है। फिल्म एक खेत के पम्प-सेट का बिजली बिल अदा करने के इर्द-गिर्द घूमती है। वेलु का छोटा सा गन्ने का खेत है और उसे व्यवस्था पर – यहाँ बिजली बोर्ड पर, काफी भरोसा है। उसको लगता है कि वह उसको देरी से बिजली का बिल अदा करने के लिए माफ़ कर देगा। लेकिन जब बिजली काट दी जाती है तो वह और उसकी पत्नी तबाह होने की कगार पर आ जाते हैं। मित्र व शुभचिंतक असहाय होकर अपने हाथ खड़े कर देते हैं और बिजली की बहाली के लिए केवल सुझाव ही दे पाते हैं। अंत में सबसे अनपेक्षित कोने से मदद मिलती है। गाँव के लोगों द्वारा हीन दृष्टि से देखे जाने वाली उनकी पड़ोसन राधा, बिजली बहाल कर देती है और बुनियादी मानवीय मूल्यों में भरोसे को सुदृढ करती है।

निर्देशक: के हरिहरन
कलाकार: ओम पुरी , दीप्ति नवल, डॉ. श्रीराम लागू, अंजन श्रीवास्तव, सविता प्रभुने।
निर्माता: एनएफडीसी लिमिटेड

डांस लाइक अ मैन
2003 | 101 मिनट | ड्रामा | अंग्रेज़ी

लगभग दो दशक बाद, जयराज और रत्ना अपने अशांत अतीत का सामना करने पर मजबूर हो जाते हैं, जब उनकी बेटी लता नर्तकी के तौर पर अपने पहले प्रदर्शन की तैयारी करती है। यादों से भरे इस घर में लता अपने मंगेतर विशाल को अपने माता-पिता से मिलवाने लाती है। एक अनजान वातावरण का सामना करते हुए, विशाल कुछ मायनों में, परिवार के रिश्तों व पीढ़ीगत झगड़ों को प्रकाश में लाने में उत्प्रेरक की भूमिका निभाता है।

निर्देशक:पामेला रूक्स
कलाकार: शोबना, आरिफ ज़कारिया, अनुष्का शंकर, समीर सोनी, मोहन आगाशे
निर्माता: एनएफडीसी लिमिटेड.


डांस ऑफ़ द विंड
1999 | 86 मिनट | सामाजिक | हिन्दी

समकालीन नयी दिल्ली पर आधारित यह फिल्म, पीढ़ी दर पीढ़ी माता-पिता द्वारा बच्चे को व गुरु द्वारा शिष्य को सिखाते हुए हिन्दुस्तानी संगीत की विरासत को सौंपने की 5000 वर्ष पुरानी परम्परा पर केंद्रित है। एक युवा गायिका का सफल पेशेवर जीवन उसकी माँ व शिक्षक की मृत्यु के कारण अचानक ठहर जाता है। यह फिल्म उसके पतन, और अपनी माँ के गुरु और तारा नाम की एक रहस्यमय युवती की मदद से पुनः स्था पित होने की कहानी है।

निर्देशक: राजन खोसा
कलाकार: किटू गिडवानी, भावीन गोसाईं, रोशन बनो, बीसी सान्याल, कपिला वात्सायन
निर्माता: एनएफडीसी लिमिटेड

पुरस्कार:

लन्दन फिल्म समारोह 1997 ऑडियंस अवार्ड,

फेस्टिवल ऑफ 3 कॉन्टी9नेंट्स 1997,

शिकागो समारोह 1998 गोल्ड प्लाक,

वेनिस फिल्म समारोह 1997 क्रिटिक्स वीक के लिए चयनित ,

रॉटरडैम फिल्म समारोह 1998 सर्वोत्तकम एशियाई फिल्म (एनईटीपीएसी अवार्ड),

ब्रिटिश एशियाई फिल्म समारोह 1998 सर्वोत्तशम निर्देशक

दत्तक
2000 | 120 मिनट | ड्रामा | हिन्दी

एक अमेरिकी लड़की से विवाहित एनआरआई सुनील, 15 वर्ष बाद अपने पिता से, जिन्होंने कभी उसकी शादी को स्वीकार नहीं किया, मिलने कोलकाता लौटता है। एक आघात उसकी प्रतीक्षा कर रहा होता है। मालूम होता है कि उसके पिता गायब हो गए हैं और कोई नहीं जानता कि वह कहाँ गए हैं। जिन लोगों के पास किसी जानकारी की संभावना है, वे बनारस में रहने वाली उसकी बहन रूमा, मुंबई स्थित उसका भाई अनिल और उनका बूढ़ा नौकर संभु हैं। गंभीर अपराध-बोध से ग्रस्त सुनील को एक सुराग़ मिलता है जो संकेत करता है कि उसके पिता ने जीवन के अंतिम कुछ दिन कोलकाता के पास एक वृद्धाश्रम में बिताए थे। अंतिम आघात तब होता है जब यह पता चलता है कि उसके पिता की मृत्यु कुछ महीने पहले ही हुई है और उनके शव पर किसी के दावा न करने के कारण उनका अंतिम-संस्कार कर दिया गया। घर पर सुनील सत्यबाबू से मिलता है जो उसे बताते हैं कि उसके पिता ने अपने बच्चों का, बच्चों द्वारा अपने पिता के मुकाबले बेहतर ख्याल रखा।

निर्देशक: गुल बहार सिंह
कलाकार: रजित कपूर, एके हंगल, कृतिका देसाई, अंजन श्रीवास्तव।
निर्माता: एनएफडीसी लिमिटेड

“देवी” अहिल्याबाई
2002 | 145 मिनट | हिन्दी | ऐतिहासिक

इतिहास नहीं बनाते
योद्धा और राजा,
इतिहास बनाती हैं,
साधारण महिलाएं,
पत्नियां और बेवाएं. . .

1720 के दशक के उत्तरार्ध में, एक अज्ञात धांगर (गड़रिये) परिवार में जन्मीं अहिल्या, केंद्रीय भारत के मालवा के प्रथम मराठा सूबेदार, मल्हारराव होलकर की बहु बनीं। अहिल्या बीस से कुछ अधिक वर्ष की और दो बच्चों की माँ थीं, जब उनके पति खान्डेराव की आकस्मिक मृत्य ने उन्हें सती-प्रथा की तरफ धकेल दिया। मल्हारराव ने इस त्रासदी को घटित होने से रोका और उन्हें होलकर राज्य की प्रशासनिक जिम्मेदारियों को संभालने के लिए प्रशिक्षित किया। अहिल्या ने परम्परा की दीवारों को तोड़ते हुए बहुत ही संयम और कठोर परिश्रम से एक छोटी उम्र में सम्मानित सामाजिक दर्जा प्राप्त किया।

उनकी पुत्री का विलंबित विवाह, उनके पथभ्रष्ट बेटे का पागल होना और मालवा की गद्दी हासिल करने के लिए हुए राजनीतिक षड़यंत्र लोक-कथाओं के विषय बन गए, लेकिन उनकी धर्मनिष्ठता और समर्पण ने उन्हें एक धर्म-सुधारक और आदर्श शासक के महान दर्जे पर पहुंचा दिया जिसने परोपकार के साम्राज्य की शुरुआत की, उसका संचालन किया और उसे बनाए रखा। द्वारका से बनारस तक और ऋषिकेश से रामेश्वरम तक उन्होंने अपने समय की किसी भी राजनीतिक सीमाओं से आगे बढ़कर और ऊपर उठते हुए एक संयुक्त भारत की पहचान बनाई।

“देवी” अहिल्याबाई महज़ एक वीरकथा याँ डॉक्युह-ड्रामा नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक फिल्म है जिमसें 16 गीतों सहित शानदार संगीत है और जो तथ्यों, लोक-कथाओं व दन्त-कथाओं को एकीकृत करते हुए हमारे समाज के शासकों के अधिकारों और कर्तव्यों के बीच अन्तर्निहित अंतरविरोधों को रेखांकित करती है।

निर्देशक: नचिकेत और जयू पटवर्धन
कलाकार: मल्लिका प्रसाद, सदाशिव अमरापुरकर, शबाना आज़मी, सतीश अलेकर, ओमकार अर्जुनवाडकर, सुरभि गांगुली, चेतन पंडित, ऋषिकेश जोशी, गणेश यादव, प्रकाश धोत्रे, जयंत सावरकर, प्रवीण तारदे, भारती ज़ाफरी
निर्माता: एनएफडीसी और पर्यटन एवं संस्कृति मंत्रालय, संस्कृति विभाग, महाराष्ट्र सरकार


धारावी
1991 | 120 मिनट | रंगीन | सामाजिक

धारावी एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी-बस्ती के घिनौने भ्रष्टाचार और अपराध ग्रस्त माहौल को परदे पर उतारती है। तेज़ गति से चलने वाला कथानक हमें प्रफुल्लित और भावप्रवण राजकरण से मिलवाता है जो टैक्सी चलाता है और अपनी पत्नी कुंदा (शबाना आज़मी) और बेटे के साथ एक कोठरी में रहता है। राजकरण कपड़े की फैक्ट्री का मालिक बनने, और अपने जीवन के हालातों को बेहतर बनाने की इच्छा से उन्मत्त है। अमीर बनने के अपने एकमात्र सपने के लिए वह अपना सब कुछ गिरवी रख देता है।

जीवन की कड़वी सच्चाइयों और तबाह करने की धमकी देने वालों कपटी मित्रों से, एकमात्र राहत देती है बॉलीवुड की नयी खूबसूरत अभिनेत्री माधुरी दीक्षित; एक कल्पीनाजगत जिसे वह सच मानता है और जहां उसे सुकून मिलता है।

निर्देशक: सुधीर मिश्रा

सम्पादक: रेनू सलूजा

संगीत: रजत ढोलकिया

कलाकार: ओम पूरी, शबाना आज़मी, रघुवीर यादव, वीरेन्द्र सक्सेना, और विशेष उपस्थिति में माधुरी दीक्षित

पुरस्कार

सर्वोत्तओम सम्पादन के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार - 1992

हिन्दी में सर्वोत्तसम फीचर फिल्म के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार - 1992

सर्वोत्तेम संगीत निर्देशक ले लिए राष्ट्रीय पुरस्कार – 1992


दीक्षा
1991 | 120 मिनट | रंगीन | हिंदी | सामाजिक

आचार्य उदुप वैदिक विद्वान हैं जो एक गुरुकुल चलाते हैं। वह एक कठोर व्यक्ति हैं और प्रशिक्षण पा रहे अपने शिष्यों से सख्त अनुशासन की मांग करते हैं। वह अपने नवीनतम शिष्य नन्नी को बेहद अरुचिपूर्ण ढंग से स्वीकारते हैं। नन्नी का प्रशिक्षण दो स्तरों पर शुरू हो जाता है – औपचारिक प्रशिक्षण आचार्य के साथ और अनौपचारिक प्रशिक्षण कुछ सहपाठियों के साथ। उदुप के साथ उनकी युवा विधवा पुत्री यमुना भी रहती है, जिसके जीवन का एक गुप्त पहलू है। वह स्थानीय स्कूलमास्टर से प्रेम करती है – जो कि ब्राह्मण समाज में एक निषिद्ध और घृणित कृत्य है। गाँव से आचार्य की अनुपस्थिति में एक रात यमुना की स्कूलमास्टर से अन्तरंग मुलाकात होती है। वह गर्भवती हो जाती है और समाज के कट्टरपंथ का निशाना बन जाती है।

निर्देशक: अरुण कौल

कैमरा: एके बीर

सम्पादन: आदेश वर्मा

संगीत: मोहिंदरजीत सिंह

कलाकार: नाना पाटेकर, मनोहर सिंह, आशीष मिश्रा, राजश्री सावंत

पुरस्कार

सर्वोत्तेम सम्पादन के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार - 1992

हिन्दी में सर्वोत्तसम फिल्म के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार - 1992

हिन्दी में सर्वोत्तसम फिल्म के लिए फिल्मफेयर क्रिटिक्स अवार्ड - 1992

सर्वोत्तेम पटकथा के लिए फिल्मफेयर क्रिटिक्स अवार्ड - 1992

सर्वोत्त म फिल्म के लिए एन्नोने अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह, फ्रांस - प्री ड्यू प्युब्ली (ऑडियंस अवार्ड्स) - 1992

मध्य प्रदेश विकास निगम - सर्वोत्त्म हिन्दी फिल्म – 1992


दोघी
बहनें

1995 | 140 मिनट | रंगीन | मराठी | सामाजिक

दो साधारण मध्य-वर्गीय लड़कियों गौरी और कृष्णा की कहानी; जो अपनी किस्मत के चलते खुद को जीवन की अलग अलग परिस्थितियों में पाएंगी। पति के जानलेवा हादसे के बाद गौरी बॉम्बे में अपने गरीब भाई के पास चली जाती है और वेश्या बन जाती है। कृष्णा उसकी सहायता करने का असफल प्रयास करती है।

निर्देशक: सुमित्रा भावे, सुनील सुखांतर

कैमरा: चारुदत्त दुखान्दी

सम्पादन: सुमित्रा भावे, सुनील सुखांतर

संगीत: आनंद मोदक

कलाकार: रेणुका दफ्तरदार, अमृता सुभाष, नीलू फुले

पुरस्कार

सिनेमा डेल्ले डोन्ने, इटली में ग्रांड जूरी इनाम

सामाजिक मुद्दे पर सर्वोत्त म फिल्म के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार - 1996

सर्वोत्तमम निर्देशक के लिए कालनिर्णय पुरस्कार - 1997

वी शांताराम पुरस्कार - दूसरी सर्वोत्तरम फिल्म, दूसरा सर्वोत्तपम निर्देशक, सर्वोत्तंम अभिनेत्री, अन्य सामाजिक मुद्दों पर सर्वोत्तरम फिल्म, सर्वोत्तिम गायिका, स्पेशल जूरी मेंशन

सर्वोत्तमम अभिनेत्री के लिए फिल्मफेयर अवार्ड

फिल्म समारोह में भागीदारी

अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह - 1996

मानहाइम अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह, जर्मनी - 1996

मिल वैली अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह, कैलिफोर्निया - 1996

अंतर्राष्ट्रीय सिनेमा डेल्ले डोन्ने टोरिनो, इटली

चौथा महिला अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह, इटली - 1997

पच्चीसवां बेलग्रेड अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह, यूगोस्लाविया - 1997

लन्दन फिल्म समारोह - 1996

कायरो अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह, मिस्र – 1996



दुविधा
1973 | 82 मिनट | रंगीन | हिन्दी

एक लड़की लाछी का विवाह व्यापारी के बेटे किशनलाल से हो जाता है। वह उसको अपने गाँव छोड़ कर तुरन्त कारोबार के सिलसिले से चला जाता है। लाछी अपने दम पर अकेले जीवन व्यतीत करने के लिए रह जाती है।
इसी बीच एक भूत को उससे प्रेम हो जाता है जो उसके पति की आकृति ग्रहण कर उसके साथ रहने लगता है। जल्द ही वह खुद को गर्भवती पाती है।
पति लौटता है...एक दुविधा खड़ी हो जाती है...
विश्व भर की लोक-कथाओं और मिथकों में मौजूद ढाँचे की तरह फिल्म दो धरातलों पर चलती है – आंतरिक-बाह्य, प्रकाश-अंधकार।

निर्देशक: मणि कौल

सम्पादन: रवि पटनायक

कलाकार: रवि मेनन, रईसा पदमसी

पुरस्कार

सर्वोत्तयम निर्देशक के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार - 1974

सर्वोत्तयम फिल्म के लिए फिल्मफेयर क्रिटिक्स अवार्ड - 1974


फिल्म समारोह में भागीदारी

बर्लिन अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह - नये सिनेमा का स्वलरूप (अन्तरिम पुरस्कार सिफ्फरिश) – 1975


एक दिन अचानक
1988 | 105 मिनट | सामाजिक | हिन्दी

कलकत्ता : एक दिन कलकत्ता शहर मूसलाधार बारिश के कारण ठहर जाता है। सब कुछ अस्त-व्यस्त हो जाता है। थोड़ी देर के लिए बाहर गए एक प्रोफेसर महीनों तक घर नहीं लौटते जिसके कारण उनका परिवार काफी घबरा जाता है। परिवार उनकी अनुपस्थिति से जन्मे शून्य में खुद को एक नए भावनात्मक जगत में फंसा पाता है।

निर्देशक: मृणाल सेन
कलाकार: शबाना आज़मी, डॉ श्रीराम लागू, अपर्णा सेन, रूपा गांगुली।
निर्माता: एनएफडीसी और दूरदर्शन

पुरस्कार:

बंगाली फिल्म‍ जर्नलिस्ट एसोसिएशन अवार्ड 1989 - सर्वोत्तोम निर्देशक, सर्वोत्तसम सहायक अभिनेता, सर्वोत्तिम सहायक अभिनेत्री, सर्वोत्तेम पटकथा, सर्वोत्त‍म कला निर्देशक, सर्वोत्ततम संपादक।

राष्ट्रीय पुरस्कार 1989 - सर्वोत्तसम सहायक अभिनेत्री।



एक डॉक्टर की मौत
1990 | 122 मिनट | रंगीन | हिन्दी | सामाजिक

अपने घरेलु जीवन के सुखों की कीमत पर किये गए वर्षों के श्रमसाध्य शोध के बाद डॉ. दीपांकर रॉय कुष्ठरोग की दवा खोज निकालते हैं। रात में यह खबर टेलीविज़न पर दिखाई जाती है और एक मामूली-सा जूनियर डॉक्टर अंतर्राष्ट्रीय मान्यता पा जाता है। व्यवसायिक ईर्ष्या और सत्ता के दुरुपयोग के चलते उनको धमकाया जाता है। चिकित्सा विभाग का सचिव प्रेस को खबर देने के लिए उन्हें डांटता है। उन्हें चिकित्सा निदेशक के सामने हाज़िर होने को कहा जाता है। उनके सहकर्मी डॉ. अरिजीत सेन और डॉ. रामानन्द उन्हें एक लेक्चर देने के लिए आमंत्रित करते हैं, परन्तु यह उन्हें नीचा दिखाने का बस एक बहाना है। डॉ. रॉय को दिल का एक मंद दौरा पड़ता है पर वह अस्पताल जाने से इन्कार कर देते हैं। उनकी पत्नी और डॉ. कुंडू उनका साथ देते हैं लेकिन उनको अपमानित करना जारी रहता है। उनके नाम अमेरिकी संस्थान से आया एक पत्र दबा दिया जाता है और उनका तबादला एक सुदूर गाँव में कर दिया जाता है। अंतिम दुभाग्यपूर्ण घटना यह होती है कि दो अमेरिकी डॉक्टरों को वही दवा खोजने का श्रेय दे दिया जाता है। डॉ रॉय चूर-चूर हो जाते हैं।

निर्देशक | कथा | संगीत: तपन सिन्हा

कैमरा: सौमेंदु रॉय

सम्पादन: सुबोध रॉय

कलाकार: शबाना आज़मी, पंकज कपूर, इरफ़ान खान, दीपा साही, विजयेन्द्र घड्गे

पुरस्कार

दूसरी सर्वोत्तआम फिल्म व सर्वोत्तूम निर्देशक के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार - 1991

सर्वोत्त्म अभिनेता के लिए स्पेशल जूरी अवार्ड - 1991

सर्वोत्त्म फिल्म व सर्वोत्त्म निर्देशक के लिए बांग्ला फिल्म जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन अवार्ड्स - 1991


फिल्म समारोहों में भागीदारी

सर्वोत्ताम पटकथा के लिए 37वां फिल्मफेयर अवार्ड - 1991

रेड क्रॉस फिल्म समारोह, सोफिया (बल्गारिया) 1991


एक घर
1989 | 98 मिनट | ड्रामा | हिन्दी

राजन्ना और गीता एक आरामदेह छोटा सा घर बनाने की उम्मीद के साथ शहर आते हैं। अपनी इच्छा अनुसार एक घर मिल जाने पर उनकी ख़ुशी की कोई सीमा नहीं रहती। सब कुशल-मंगल होता है लेकिन एक दिन पड़ोस में तरह-तरह की आवाज़ करने वाला एक वर्कशॉप खुल जाता है। जब शोर सहनशीलता की हद से बाहर चला जाता है, राजन्ना क्रोधित होता है परन्तु कुछ ख़ास कर नहीं पाता। तभी एक दिन वह पाता है कि उसकी पत्नी ने शेड को खाली कराने के असंभव कार्य में सफलता हासिल कर ली है लेकिन पुलिस इंस्पेक्टर की मांगें मान कर। राजन्ना अब गीता को इस माहौल से दूर ले जाना चाहता है। वह वर्कशॉप के मजदूरों से सहायता मांगने की कोशिश करता है लेकिन पाता है कि उनकी झुग्गी-बस्ती को उजाड़ कर एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी के लिए जगह बनायी जा रही है।

निर्देशक: गिरीश कासरावली

कलाकार: नसीरुद्दीन शाह, दीप्ति नवल, रोहिणी हट्टंगडी
निर्माता: एनएफडीसी लिमिटेड.


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