ताशेर देश
2013 | 114 मिनट | बांग्ला | फंतासी / म्यूज़िकल

एक कहानीकार हुआ करता था। कोलकाता में एक सुनसान रेलवे स्टेशन पर वह ट्रेनों से बातें करता था। वह एक कहानी बताना चाहता था। यह कोई नयी कहानी नहीं थी। लेकिन उसके लिए यह बताए जाने लायक एकमात्र कहानी थी। उसके मस्तिष्क के अन्धकार में उसकी कहानी उद्घाटित होती है जो एक फंतासी का कलाइडस्कोप है। एक बार एक राजकुमार होता है। भाग्य के मारे उस राजकुमार को उसकी माँ के साथ एक सुदूर और अँधेरे कैदखाने में निर्वासित कर दिया जाता है। वह यहाँ, शराब के नशे में डूबी रहने वाली अपनी मां के साथ, बिना किसी उम्मीद और भविष्य के बड़ा होता है। उसकी उदासी का केवल एक ही उपाय है, व्यापारी का पुत्र उसका मित्र, जो यह तर्क पेश करता है कि, वास्तव में बंदिश में बने रहना बस राजकुमार के पसन्द की बात थी। वह एक भविष्यवक्ता को आमंत्रित करता है। भविष्यवक्ता, एक रहस्यमयी आकृति के रूप में आता है और मुक्ति का सन्देश सुना जाता है। राजकुमार एहसास करता है कि वह वाकई अपनी मानसिकता का ग़ुलाम है। वह निकल भागने का फैसला लेता है। वह अपनी माँ के साथ आखिरी बार मिलता है, जो उसे जाने देती है। राजकुमार अपनी किस्मत को नियंत्रित करता है और अपने मित्र के साथ रोमांच की खोज में एक यात्रा पर निकल पड़ता है। कहानीकार भी अपनी यात्रा शुरू करता है। शहर छोड़ वह उस वीरान जगह के लिए निकल पड़ता है जहां हमें राजकुमार मिला था। यहाँ वह एक असाधारण महिला से मिलता है, एक विधवा, जो अकेले रहती है मानो उसी का इंतज़ार कर रही हो। वह उससे मंत्रमुग्ध होकर कहानी सुनाने लगता है। वह उसकी प्रेरक शक्ति बन जाती है, जिसका उसे इंतज़ार था। आखिरकार श्रोता मिल जाने पर, कहानीकार एक और भी गंभीर कथा शुरू कर देता है। जहाज टूटने पर एक स्वकर्गिक टापू पर पहुंचे राजकुमार और उसके मित्र का सामना एक विचित्र संस्कृति से होता है। सभी द्वीपवासी सैनिक हैं और वे खुद को ‘ताश के पत्ते’ बुलाते हैं और किसी भी प्रकार के मानवीय व्यवहार को खारिज करने वाली आचार-संहिता का पालन करते हैं। इससे पहले की उनको पता चलता, द्वीपवासियों की एक आक्रामक टोली दोनों मित्रों को बंदी बना लेती है। उन्हेंक अदालत में पेश किया जाता है, और उनकी प्रथाओं का उल्लंमघन करने के कारण ताश दोनों को अपराधी करार करके निर्वासित करने की सजा सुनाते हैं। जाने से पहले, राजकुमार एक अंतिम बात कहने की अनुमति मांगता है और इस अवसर का प्रयोग फ़रिश्ते द्वारा दिए गए मुक्ति के सन्देश को द्वीप की कुछ महिलाओं के कान में फुसफुसाने के लिए करता है। अराजकता फैल जाती है। महिलाएं उद्विग्न हो जाती हैं और ताश का देश अपनी पहली बग़ावत अनुभव करता है।

निर्देशक: क्यू

निर्माता: एनएफडीसी, अनुराग कश्यप फिल्म्स प्राइवेट लिमिटेड, क्यू, सेलीन लूप

कलाकार: जोयराज भट्टाचार्जी, री सेन, सौम्यक कान्ति डे बिस्वास, अनुब्रता बसु, तिलोताम्मा शोम, टीनू वर्घिस, इमाद शाह, माया टाइडमैन

द गुड रोड
2013 | 92 मिनट | गुजराती | ड्रामा

पप्पू एक ट्रक चालक है। अपने मात-पिता और विस्तृत-परिवार को पालना उसके औकात के बाहर है। अब उसे एक योजना पेश की जाती है। एक फर्जी दुर्घटना का ढोंग रचा जाएगा। पप्पू “मारा” जाएगा। बीमे की राशि ठीक ठाक है। एक मध्य-वर्गीय शहरी युगल डेविड और किरण, अपने पुत्र आदित्य के साथ छुट्टी मनाने आये हैं। ढाबे पर एक संक्षिप्त विराम के दौरान आदित्य अचानक उनसे बिछड़ जाता है। और उसके लापता होने का पता कई घंटों और कई किलोमीटर बाद पता चलता है। उसको ढूंढने के लिए उन्हें वापस लौटना होगा। पूनम शहर से आई 11 वर्षीय लड़की है। वह हाईवे के छोर पर बसे नगर में रहने वाली अपनी दादी को ढूंढने आई है। थकान और भूख में वह टोपाज़ पर रुक जाती है, जो एक कपड़ा डाई करने का छोटा सा कारखाना लगता है। आदित्य एक स्थानीय ढाबे वाले को मिल जाता है और वह उसे पप्पू के ट्रक पर चढ़ा देता है। क्या आदित्य को ट्रक पर एक नया और अनोखा घर मिल गया है? कुछ समय बाद, जब बहुत देर हो चुकी होगी, पूनम पाएगी कि टोपाज़ उसके लायक जगह नहीं है। उसका उन्ही चीज़ों से सामना होगा जिनसे वह भाग रही है। लड़की किस ओर मुड़ेगी? और पप्पू अपने परिवार की ज़रूरतों और बच्चे की परेशानी का हल ढूंढता अपने अन्दर एक नयी शक्ति और दृढ़ता पायेगा।

निर्देशक ज्ञान कोरिया

निर्माता: एनएफडीसी

कलाकार: सोनाली कुलकर्णी, अजय गेही, केवल कट्रोडिया, शामजी धना केरसिया, प्रियांक उपाध्याय, पूनम केसर सिंह

पुरस्कार: सर्वोत्तम गुजराती फिल्म के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, 2013

गंगूबाई
2012 | 110 मिनट | मराठी-हिन्दी-अंग्रेज़ी | ड्रामा

गंगूबाई , एक निःसन्तान बूढ़ी विधवा है जिसने माथेरान नामक एक छोटे से औपनिवेशिक हिल स्टेशन पर एक परिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र में, जहां परिवहन और, यहाँ तक की साइकलों को लाना भी मना है, अपने प्यारे फूलों की देखभाल करते हुए अपना पूरा जीवन बिताया है। गंगूबाई के शांत जीवन में हलचल तब मचती है जब वह एक दिन होदिवाला की किशोर बेटी को जामुनी रेशम पर सफ़ेद कलाकारी वाली शानदार पारसी साड़ी पहने देखती है। बूढ़ी महिला तुरन्त इस अनोखी, कीमती और विशेष रूप से निर्मित रचना की ओर आकर्षित हो जाती है और वैसी ही एक साड़ी खरीदने की चाहत रखती है।

इस असाधारण जुनून से प्रेरित, वह अंततः खुद को विशाल, प्रदूषित और भीड़-भाड़ भरे मुंबई शहर में पाती है जो उसके लिए एक ऐसा दुस्व्प्नव है जिसके लिए वह कभी तैयार नहीं थी। फिर भी, उसके आत्मीय गुण उसके जीवन को उसके द्वारा कल्पना किये गए किसी भी रास्ते से बेहतर रास्ते पर ले जाते हैं...

निर्देशक प्रिया कृष्णस्वामी

निर्माता: एनएफडीसी

एज़ द रिवर फ्लोज़

भारत | 2009 | सामजिक-राजनीतिक थ्रिलर | असमिया

एक सामजिक कार्यकर्ता श्रीधर रंजन, दुनिया के सबसे बड़े आवासी नदी-द्वीप की गतिविधयों से अनुपस्थित है। 7 वर्ष बाद, जब उसका पत्रकार मित्र अभिजीत उसकी खोज में आता है, तब श्रीधर को आधिकारिक तौर पर मृत घोषित किया जाने वाला है।

अभिजीत आतंकवाद से प्रभावित प्रतिकूल हालातों में अपरिचित आदिवासियों के बीच एक अजनबी है। उसकी एकमात्र उम्मीद खूबसूरत स्थानीय गाइड सुदक्षिणा है। लेकिन ब्रह्मपुत्र नदी की तरह उसके जीवन में एक अदृश्य अंतर्प्रवाह है। क्या अभिजीत रहस्य को सुलझा पायेगा? क्या वह अपने मित्र श्रीधर रंजन की दिशा में ही जा रहा है? क्या उसका भी वही हश्र होने वाला है?

निर्देशक: बिद्युत कोटोकी

चलचित्रण: मधु अम्बट

निर्माता: एनएफडीसी

कलाकार: संजय सूरी, विक्टर बनर्जी, राज ज़ुत्शी


निर्देशक की ओर से: बिद्युत कोटोकी

जब हम विश्व के किसी भी कोने में आतंकवाद की बात करते हैं, हम आतंकवादियों का पक्ष जानते हैं, क्यूंकि वह प्रचार पर फलते-फूलते हैं। उनका विरोध करने वाले लोगों को उनके प्रचार का प्रत्युत्तर देना होगा, जिससे हमें उनका पक्ष भी पता चल सके। प्रचारों के इस आक्षेपों-प्रत्यापक्षेपों में आम आदमी की आवाज़ दब जाती है। मेरी फिल्म उस मौन बहुसंख्या को एक स्वर प्रदान करने का विनम्र प्रयास है...

अन्हे घोड़े दा दान
आम्ज फॉर अ ब्लाइंड हॉर्स

2011 | 113 मिनट | पंजाबी | ड्रामा

एनएफडीसी ने 10 अगस्त 2012 को, पीवीआर ‘डायरेक्टर्स रेयर’ की सहभागीदारी में - गुरविंदर सिंह द्वारा निर्देशित एक पंजाबी फिल्म, अन्हे घोड़े दा दान – रिलीज की।

गुरविंदर सिंह की पहली पंजाबी फीचर फिल्म अन्हे घोड़े दा दान , ज्ञानपीठ पुरस्कातर प्राप्तत पंजाबी उपन्यासकार प्रोफेसर गुरदयाल सिंह के उपन्यास पर आधारित अन्हे घोड़े दा दान, बेकाबू हालातों का सामना करते हुए, वर्षों से अधीन संघर्षरत जनता पर पड़े प्रभाव को पर्दे पर उतारने का प्रयास करती है। वे अपनी किस्मत की दिशा बदलने और शक्ति-संतुलनों की अदृश्य हिंसा के आगे बेबस हैं। अन्हे घोड़े दा दान उनके चेहरों पर उकरे हुए तीव्र असंतोष को प्रतिबिंबित करती है।
फिल्म अमेरिकी पत्रिका फिल्म कमेंट द्वारा वर्ष 2011 की 10 सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में नामांकित हुई!

निर्देशक | पटकथा: गुरविंदर सिंह

कहानी: गुरदयाल सिंह के उपन्यास पर आधारित

संगीत: कैथरीन लैम्ब

रचनात्मक निर्माता: स्वर्गीय मणि कौल

निर्माता: एनएफडीसी

संस्कार
रिफार्म

2011 | 80 मिनट | बांग्ला (अंग्रेज़ी सबटाइटलों के साथ) | ड्रामा

संस्कार एक भयानक रहस्योद्घाटन का बयान करती है। एक व्यक्ति की सामाजिक रूप से अस्वीकार्य स्थिति के कारण अविश्वसनीय अपमान जो नज़दीकी रिश्तों में इतना तीव्र भूचाल ला देता है कि लम्बे समय से पोषित रिश्ते टूटने-बिखरने लगते हैं। बूढ़े पिता, पत्नी, बेटा, दोस्त व सहयोगी बेहद अविश्वास के साथ एक अर्थहीन आपदा का सामना करते हैं और पुराने रिश्ते का नफरत और पीड़ा के साथ मूल्यांकन करते हैं।

निर्देशक | पटकथा: स्वर्गीय श्री नब्येंदु चटर्जी

कहानी: श्यामल सेनगुप्ता

निर्माता: एनएफडीसी

एज़ द रिवर फ्लोज़
एखों नेधेका नोदिर झिपारे

2011 | 100 मिनट | असमिया |राजनीतिक थ्रिलर

एक सामजिक कार्यकर्ता श्रीधर रंजन, दुनिया के सबसे बड़े आवासी नदी-द्वीप की गतिविधयों से अनुपस्थित है। 7 वर्ष बाद, जब उसका पत्रकार मित्र अभिजीत उसकी खोज में आता है, तब श्रीधर को आधिकारिक तौर पर मृत घोषित किया जाने वाला है।

अभिजीत आतंकवाद से प्रभावित प्रतिकूल हालातों में अपरिचित आदिवासियों के बीच एक अजनबी है। उसकी एकमात्र उम्मीद खूबसूरत स्थानीय गाइड सुदक्षिणा है। लेकिन ब्रह्मपुत्र नदी की तरह उसके जीवन में एक अदृश्य अंतर्प्रवाह है।

क्या अभिजीत रहस्य को सुलझा पायेगा? क्या वह अपने मित्र श्रीधर रंजन की दिशा में ही जा रहा है? क्या उसका भी वही हश्र होने वाला है?

निर्देशक: बिद्युत कोटोकी

चलचित्रण: मधु अम्बट

निर्माता: एनएफडीसी

मायाबाज़ार
110 मिनट | रंगीन | बांग्ला

मायाबाजार कोलकाता के सभी थियेटरों में जून 1, 2012 को प्रदर्शित हुई फिल्म जोयदीप घोष द्वारा निर्देशित और भारत के राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम द्वारा निर्मित है।

स्मृति... (Memories)

स्मृति एक जवान विधवा कुहू की कहानी है जो अपने पति की यादों में डूबी हुई है। वह इतनी ज्यादा मग्न है कि जब वह एक प्रेमी ढूँढ लेती है तो वह धीरे-धीरे उसके मृत पति में बदलने लगता है। निशित एक बार में अपनी महिला मित्र से मुलाकात होने पर कुहू की यादों और अकेलेपन की कहानी सुनाता है।

सत्व

सत्व एक चित्रकार धृतिन की कहानी है जो अपनी सौतेली माँ के साथ एक बड़े से घर में रहता है। अपने मित्र शोमक द्वारा खींची गयीं पुराने कलकत्ता की तस्वीरों को पलटते वक्त वह उस लड़की की तस्वीर देखता है जो उसके सपनों में बार बार आती है। शोमक से पूछने पर वह बताता है की वह उसकी बहन वनलता है जो बहुत दूर रहती है। धृतिन निझमपुर स्थित उसके गाँव के घर जाता है जहाँ रखवाला कालिदा उसे वनलता के बारे में बताता है जो तालाब में डूब गयी थी। धृतिन वनलता की उपस्थिति घर में महसूस करता है और धीरे धीरे उसपर वनलता का जुनून सवार हो जाता है। उसका जुनून इस हद तक चला जाता है कि एक दिन अचानक वह उसको अपनी कल्पना में गढ़ता है और वनलता के स्व-रचित रूप के साथ रहने लगता है।

बोभिश्वोत (भविष्यव)

बोभिश्वोत गणित के प्रोफेसर महेश और दर्शन के प्रोफेसर हरिनाथ की कहानी है। महेश एक नास्तिक है व हरिनाथ एक आस्तिक है। बहस चलती रहती है और कई घटनाओं से गुज़रते हुए उनका सामना जीवन के एकमात्र सत्य से होता है – जो कि मौत है।

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